मैं शायर नही हूं,
क्यों मैं शायरी कर रहा हूं।
मुश्किल है, तुझे एक साथ लिखना,
तभी तो टुकड़ों में लिख रहा हूं।
जो गिरे है आंसू लिखते - लिखते,
उन्हीं से मैं 'तनहा' लिख रहा हूं।
एक - एक घावों को तेरे,
अपने शब्दों से सिल रहा हूं।
लगता है धीरे - धीरे, अब
मैं भी शायर बन रहा हूं।
मैं शायर नही हूं,
क्यों......................
~प्रज्ज्वलित यादव~
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