राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009
74वां संविधान संशोधन 1992 के समय प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हाराव तथा राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा थे। ये संविधान संशोधन लोकसभा में दिसम्बर 1992 में तथा राज्यसभा में भी दिसम्बर 1992 में पास होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अप्रैल 1993 में पास कर दिया गया था। यह भारत में 1 जून 1993 में लागू हुआ। राजस्थान में यह संविधान संशोधन मुख्यमंत्री भैरूसिंह शेखावत के समय अगस्त 1993 में लागू हुआ।
ये संविधान में भाग 9ए के द्वारा जोड़ा गया है। इसमें अनुच्छेद 243(पी) से 243(जेड जी) तक है और अनुसूची 12वीं है तथा इसमें 12 विषय है।
नगरीय निकाय - 3 स्तरिय है -
1. नगरपालिका
2. नगरपरिषद्
3. नगरनिगम
- राजस्थान की पहली नगरपालिका 1864 में माऊंट आबू में स्थापित हुई थी। ऐसे ही अजमेर, ब्यावर और जयपुर में क्रमशः 1866, 1867 और 1869 में स्थापित हुई थी।
- राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009 के समय 13वीं विधानसभा थी, अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत थे, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे तथा राज्यपाल शैलेन्द्र सिंह थे। इसे राज्यपाल ने अनुमति 11 सितम्बर 2009 को दी थी। इस अधिनियम में 17 अध्याय, 6 अनुसूची तथा 344 धाराएँ हैं।
अध्याय 1 से 6 -
1 - 1 से 2 धाराऐं (अध्ययन योग्य नहीं)
2 - 3 से 50 धाराऐं (गठन और शासन)
3 - 51 से 66 धाराऐं (कार्य संचालन और वार्ड समिति)
4 - 67 से 75 धाराऐं (सम्पत्ति)
5 - 76 से 89 धाराऐं (वित्त - निधि)
6 - 90 से 100 धाराऐं (अध्ययन योग्य नहीं)
अध्याय - 2
3 से 50 धाराऐं (गठन और शासन)
धारा 3 से 7 तक - नगरपालिका का परिसीमन, गठन, संरचना और कार्यकाल
धारा 8 से 44 तक - नगरपालिका का शासन व प्रशासन, नगरपालिका अध्यक्ष उपाध्यक्ष कि योग्यताऐं, शपत और त्यागपत्र आदि
धारा 45 से 47 तक - नगरपालिका के कार्यों का उल्लेख
धारा 48 - नगरपालिका अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के कार्य
धारा 49 से 50 तक - नगरपालिका के मुख्य नगरपालिका अधिकारी की शक्तियाँ
धारा 3 - नगरपालिकाओं का परिसीमन
- नई नगरपालिका बनने पर 6 माह में चुनाव कराये जाऐगे।
- किसी गांव को नगरपालिका घोषित करने पर वार्ड पंच, उपसरपंच और सरपंच क्रमशः सदस्य, उपप्रधान और प्रधान बन जाते है।
- किसी पूर्व नगरपालिका को खत्म करने पर निर्वाचित सदस्यों को हटा दिया जाऐगा।
- अगर दूसरी नगरपालिका मिलाई गई है तो उस नगरपालिका के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सदस्य नगरपालिका सदस्य माने जाऐगे। शामिल होने वाली नगरपालिका शेष कार्यकाल तक ही रहेगी।
उपधारा 2 - नई नगरपालिका बनी है या सीमा परिवर्तन हुआ हो, वे सीमा चिन्हों का निर्धारण स्वयं के खर्चे से करेगी।
उपधारा 3 - जब कोई क्षेत्र नगरपालिका अस्तित्व में नहीं रहे, तब उस क्षेत्र की निधि, सम्पत्ति राज्य सरकार के अधीन हो जाऐगी।
उपधारा 4 - किसी नगरपालिका को समाप्त कर, उसे अन्य स्थानिय प्राधिकारी में शामिल करने पर, नगरपालिका की निधि और सम्पत्तियाँ उस प्राधिकारी में चली जाऐगी जिसमें उसे शामिल किया गया है।
उपधारा 8 - जब गांव नगरपालिका में शामिल हो जाऐ तो उस क्षेत्र में पंचायत कार्य करना बंद कर दिया जाऐगा तथा चुनाव नही हो तब तक सरपंच, उपसपंच और सदस्य इस नगरपालिका के सदस्य बन जाऐगे।
धारा 4 - राज्य सरकार द्वारा नगरपालिका को नगरपालिका अधिनियम के अनुपयोगी प्रवधानों में छुट
इसमें नगरपालिका को नगरपालिका अधिनियम के अनुपयोगी प्रवधानों में छुट दी गई है।
धारा 5 - नगरपालिका की स्थापना एवं निगमन
उपधारा 1 - किसी गांव या संक्रमण शील क्षेत्र को नगरपालिका बनाना।
उपधारा 2 - लघुतर शहरी क्षेत्र को नगरपरिषद् बनाना।
उपधारा 3 - वृहत शहरी क्षेत्र को नगरनिगम बनाना।
अपवाद - किसी ऐसे नगरिये क्षेत्र या भाग में नगरपालिका का गठन नहीं किया जा सकता, जिसे राज्यपाल अधिसूचना जारी करके औधोगिक नगर घोषित कर दिया हो। राज्य सरकार किसी शहरी क्षेत्र के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पर्यटन और अन्य महत्व के स्थान को ध्यान में रखते हुऐ गजट में अधिसूचना प्रकाशित कर विकास प्राधिकरण का गठन कर सकती है।
धारा 6 - नगरपालिका की संरचना
किसी नगरपालिका के सभी स्थान वार्ड के नाम से जाने जाते है व सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है, कम से कम 13 वार्ड होने चाहिए। विधानसभा सदस्य नगरपालिका का पदेन सदस्य होता है व लोकसभा सदस्य नगरपरिषद् और नगर निगम का सदस्य होता है। पदेन सदस्यों को वोट देने का भी अधिकार हैं।
मनोनीत सदस्यों की संख्या -
नगरपालिका - 6
नगरपरिषद् - 8
नगरनिगम - 12
मनोनीत किसी भी सदस्य को कभी भी हटाया जा सकता है। मनोनीत सदस्यों में एक दिव्यांग व्यक्ति भी शामिल होगा तथा अनुसूचित जाति और जनजाति को जनसंख्या को अनुपात में स्थान के आरक्षण का प्रवधान किया गया है।
धारा 7 - पदावधि या कार्यकाल
नगरपालिका का कार्यकाल प्रथम बैठक कि निश्चित तिथि से 5 वर्ष तक रहेगा लेकिन राज्य सरकार किसी भी नगरपलिका को इससे पहले भी विघटित कर सकती है।
विघटन के बाद गठन कि गई नगरपालिका कि अवधि शेष कार्यकाल तक रहेगी।
धारा 8 - नगरपालिका शासन का नगरपालिका में निहित होना
नगरपालिका का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यें उसी नगरपालिका के प्रति निहित होगें।
धारा 9 - वार्डों का विभाजन
कुल स्थानों के बराबर वार्डों का विभाजन किया जाऐगा। विभाजन जनसंख्या के आधार पर किया जाऐगा।
सूत्र - नगरपालिका क्षेत्र की कुल जनसंख्या/नगरपालिका के कुल स्थान
धारा 10 - वार्डों का अवधारण
वार्ड का निर्धारण राज्य सरकार करेगी तथा वार्ड का निर्धारण उ. प. कोण से किया जाऐगा।
धारा 11 - नगरपालिका के लिए निर्वाचन
उपधारा 1 - चुनाव का सम्पूर्ण संचालन, अधीक्षण, निर्देशन व नियंत्रण का कार्य राज्य चुनाव आयोग को सोपा गया है।
उपधारा 2 - चुनाव निम्न अवधि में कराऐ जाऐगे -
- कार्यकाल समाप्ति से पूर्व।
- विघटन की तिथि के बाद यदि 6 माह ही शेष रहे है तो चुनाव नहीं होगें।
धारा 12 - राज्य निर्वाचन आयोग के कृत्यों का प्रत्यायोजन
इस धारा में यह प्रावधान है कि राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव का कार्य उपनिर्वाचन आयुक्त को (यदि है तो) सोपता है या राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव को सोपता है।
धारा 13 - प्रत्येक वार्ड के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करना
निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी नामांकित करेगा प्रत्येक वार्ड के लिए।
निर्वाचन रजिस्ट्री अधिकारी के कार्यों में सहायता के लिए एक या एक से अधिक सहायक निर्वाचन रजिस्ट्री अधिकारी नियुक्त होगें।
निर्वाचन नामावली की योग्यताऐं
- आयु - 18 वर्ष
- वार्ड का मामूली तौर पर निवासी हो।
- कोई भी व्यक्ति एक से अधिक वार्ड की निर्वाचक नामावली में नाम दर्ज नहीं करा सकता है।
धारा 14 - नामावली में रजिस्ट्रशन के लिए अयोग्यताऐं
उपधारा 1 -
- भारत का नागरिक न हो।
- पागल हो।
उपधारा 2 -निर्वाचक नामावली में किसी व्यक्ति के अयोग्य होने पर उसका नाम नामावली में से तत्काल हटाने का प्रावधान है। परन्तु यदि वह पुनः योग्यता प्राप्त कर लेता है तो नामावली में उसका नाम पुनः जोड़ा जा सकता है।
धारा 15 - मिथ्या घोषण
यदि कोई व्यक्ति गलत जानकारी देकर अपना नाम वार्ड की निर्वाचक नामावली में दर्ज करता है तो उसे निम्न दण्ड दिया जाऐगा -
- 1 वर्ष का कारावास हो सकता है।
- 2000 से 5000 रू तक का जर्माना हो सकता है।
- उपरोक्त दोनों सजा भी हो सकती है।
धारा 16 - मुख्य निर्वाचन अधिकारी
नियुक्ति - मुख्य निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार की परामर्श पर राज्य निर्वाचन आयोग करेगा।
निर्वाचन अधिकारी - निर्वाचन नामावली की तैयारी, शुद्ध व पुर्निषण की जाँच करेगा।
धारा 17 - जिला निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति
जिला निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार के परामर्श पर राज्य चुनाव आयोग करेगा। प्रत्येक जिले के लिए एक से अधिक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किये जा सकते है।
धारा 18 - कर्मचारी उपलब्ध करवाना
निर्वाचन अधिकारी की सहायता के लिए सरकार की अनुमति से कर्मचारी उपलब्ध करवाना।
धारा 19 - सरकारी अधिकारी को राज्य निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर समझना
जब कोई सरकारी अधिकारी या कार्मचारी राज्य चुनाव आयोग के कार्यों मे सहायता कर रहा है तो वह वहा का प्रतिनियुक्त माना जाऐगा। वह कर्मचारी राज्य चुनाव आयोग के नियंत्रण व अधिकार में काम करेगा।
धारा 20 - निर्वाचन रजिस्ट्री अधिकारी के पद का दुरूपयोग
यदि निर्वाचन रजिस्ट्री अधिकारी अपने पद का दुरूपयोग करता है तो -
- 3 माह से 2 वर्ष का कारावास होगा।
- 1000 से 2000 का जुर्माना होगा ।
- उपरोक्त दोनों भी सजा भी हो सकती है।
धारा 21 - सदस्यों की योग्यता
- नगरपालिका के किसी वार्ड का निवासी होना चाहिए।
- उसकी न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए।
- घर में स्वच्छ शौचालय होना चाहिए।
धारा 21(क) - कुछ स्थानों पर निर्वाचन के लिए विशेष योग्यता -
- न्यूनतम आयु 21 से 35 वर्ष हो।
- अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व महिलाओं के लिए जो सीटें आरक्षित कि गई है उनमें दो सीटें विशेष योग्यता के लिए भरी जा सकती है।
- अगर किसी नगरपालिका में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 3 या 3 से कम है तो वहां एक सीट विशेष योग्यता के अनुसार भरी जाऐगी।
- अगर किसी नगरपालिका में अनारक्षित सीटों की संख्या 5 या 5 से कम है तो वहां एक सीट विशेष योग्यता से भरी जाऐगी।
- अगर किसी नगरपालिका में अनारक्षित सीटों की संख्या 5 से अधिक है तो वहां ऐसे 5 स्थानों के प्रत्येक खण्ड में एक स्थान विशेष योग्यता से भरा जाऐगा।
धारा 22 - एक से अधिक वार्डों में चुनाव लडने पर रोक
कोई भी उमीदवार एक से अधिक जगह से चुनाव नहीं लड सकता है। अगर किसी उमीदवार ने एक से अधिक वार्ड में नामांकन दाखिल किया है तो 3 बजें तक एक वार्ड को छोड़कर अन्य वार्डों से नामांकन वापस लेना होगा। अगर व्यक्ति निर्धारित समय से नामांकन वापस नहीं लेता है तो उसका सभी वार्डों से नामाकंन रद्द माना जाऐगा।
धारा 23 - ध्वनि विस्तारक, आदि के उपयोग पर प्रतिबन्ध
उपधारा 1 - राज्य निर्वाचन आयोग अधिसूचना की प्रकाशन तारिख से प्रारम्भ होकर निर्वाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया होने तक बेनर, स्पीकर, आदि पर प्रतिबन्ध लागा सकेगा।
उपधारा 2 - प्रतिबन्धों में से किसी का उल्लधन करता है तो 5000 रू का दंड है।
उपधारा 3 - 6 वर्ष का कारावास भी हो सकता है।
धारा 24 - सदस्यों की साधारण अयोग्यताऐं
इसमें कुल 19 अयोग्यताऐं हैं।
- किसी न्यायालय द्वारा नैतिक अधमात वाले किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो।
- धारा 245 के तहत अपराध सिद्ध किया जा चूका हो।
- किसी न्यायालय में 5 वर्ष या अधिक के लिए आरोप निर्धारित हो।
- खाद्य अपमिषर्ण निवारण अधिनियम के किसी अपराध में दोषी हो।
- किसी सेवा से कदाचार के आधार पर हटाया गया हो।
- ऐसा पेशवर व्यक्ति रह चुका हो जिसे किसी प्राधिकारी के आदेश द्वारा ऐसा व्यवसाय करने से रोका गया हो।
- नगरपालिका की शक्ति या व्यवस्था के अन्तर्गत किसी लाभ के पद पर हो।
- केन्द्र या राज्य सरकार के किसी वेतनिक या आसकालिक पद धारण कर रखा हो।
- न्यायालय द्वारा दिवालिया या पागल घोषित किया गया हो।
- दो या दो से अधिक संतानें हैं (27 नवम्बर 1995 के बाद) तो अयोग्य माना जाऐगा।
- नगरपालिका की संपत्ति पर कब्जा या गमन किया गया हो।
- भारतीय दंड सहिंता 1973 के तहत दोषी ठहराया गया हो।
धारा 25 - मतदान का अधिकार
उपधारा 1 - प्रत्येक व्यक्ति जिसका निर्वाचक नामावली में नाम है वह उस वार्ड में मत देने का अधिकारी है।
उपधारा 3 - कोई व्यक्ति एक से अधिक वार्डों में यदि मत देता है तो समस्थ वार्डों मे उसका मत शून्य माना जाऐगा।
उपधारा 5 - यदि कोई व्यक्ति कारागार में है तो वह निर्वाचन/वोट नहीं दे सकता है।
नोट - अगर कोई व्यक्ति निवारक निरोध अधिनियम के तहत है तो उस पे ये नियम लागू नहीं होगा।
धारा 26 - निर्वाचन में मत देने की रीति
मत पत्र द्वारा मतदान करवाया जाऐगा। कोई प्रतिनिधि एवजी/प्रोक्सी के माध्यम मत नहीं दिया जा सकता है। एक व्यक्ति केवल एक ही व्यक्ति के लिए मत दे सकता है।
मतदान इ. वी. एम. मशीन द्वारा भी किया जा सकता है।
धारा 27 - आकस्मिक रिक्तियां किस प्रकार भरी जायेंगी
पद रिक्त होने पर उपचुनाव से भरा जाऐगा। पद पर उपचुनाव के बाद आए व्यक्ति का कार्यकाल शेष समय के लिए ही होगा। जिस आरक्षित वर्ग का पद खाली हुआ है, उस पद को उसी वर्ग के व्यक्ति द्वारा ही भरा जाऐगा।
धारा 28 - निर्वाचन अपराध
उपधारा 1 - लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धार 125, 126, 127, 127क, 128, 129, 130, 131, 132, 133, 134, 134क, 135, 135क, 135ख, 135ग, व 136 धाराओं में निर्वाचन अपराध का उल्लेख हैं।
उपधारा 2 - अगर उमीदवार चुनाव नामांकन या शपत पत्र की घोषणाओं मे कोई सूचना छुपाता है तो 6 माह तक का कारावास या जुर्माना या दोनो के द्वारा भी दंडित किया जा सकता है।
नोट - लोकनीति की घोषण वेद अधिकार माना जाऐगा। सती प्रथा या सती के गुणगान पर वोट नहीं मांग सकता है।
धारा 29 - भ्रष्ट आचरण
- रिश्वत लेना।
- किसी मतदाता को वोट देने से रोकना।
- समाजिक बहिस्कार या किसी उमीदवार को जाति से बाहर करना।
- धर्म, जाति और समुदाय आदि पर वोट मांगना।
- राष्ट्रीय प्रतीकों का दुरूपयोग करना।
- सती प्रथा का गुणगान करना (सती निर्वारण अधिनियम 1987 के तहत)
- मतदाता को प्रलोभन देना।
- सरकारी कर्मचारी का दुरूपयोग करना।
धारा 30 - निर्वाचन संबंधी मामलों में सिविल न्यायालयों की अधिकारिता
किसी भी सिविल न्यायालय को वार्डों के परिसीमन, वार्डों के आवंटन व निर्वाचन नामावली को तैयार करना आदि के संबंध में कोई अधिकारिता नहीं हैं।
धारा 31 निर्वाचन याचिका
यदि चुनाव में किसी भी प्रकार का भ्रष्ट आचरण होता है तो जिला न्यायलय में उसके खिलाफ याचिका लगाई जाऐगी।
उपधारा 1 - याचिका कौन लगाऐगा - उस वार्ड का कोई उमीदवार, उस वार्ड का निर्वाचक
याचिका लगाने कि समय अवधि - 1 माह (निर्वाचन तिथि से)
धारा 32 - जिला न्यायाधीश के आदेशों के विरूद्ध अपीलें
निर्वाचन याचिका पर जिला न्यायाधीश किऐ गये प्रत्येक आदेश के विरूद्ध अपील उच्च न्यायालय में होगी। अपील जिला न्यायालय के आदेश से 30 दिन कि अवधि में कि जाऐगी।
धारा 33 - समस्त उम्मीदवारों का निर्वाचन अपास्त होने की दशा में प्रक्रिया
किसी नगरपालिका के सभी सदस्य या 2/3 सदस्य का निर्वाचन यदि न्यायालय के द्वारा निरस्त कर दिया जाऐ तो राज्य सरकार नगरपालिका को विघटित कर देगी।
नोट - ऐसा होने पर धारा 322 के प्रवधान लागू हो जाऐगे।
धारा 34 - आदेशों और विनिश्चयों की अन्तिमता
धारा 34 में प्रवधान है कि जिला न्यायालय व उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों का आदेश अन्तिम होगा।
धारा 35 - निरर्हरताएं
नगरपालिका सदस्य यदि निर्वाचन संबंधी अपराध (धारा 28 व 29) में दोषी सिद्ध हो जाता है तब आगामी 6 वर्षों तक चुनाव लेड़ने पर प्रतिबन्ध होगा।
धारा 36 - निरर्हरता का हटाया जाना या उसकी कालावधि में कमी करना
इस धारा में राज्य निर्वाचन आयोग को ये शक्ति दी गई है की यह नगरपालिका के सदस्यों की निरर्हता को हटा सकता है या कम कर सकता है।
धारा 37 - पद की शपथ
इसमें राज्य सरकार के आदेश पर नगरपालिका अध्यक्ष व सदस्यों का पद ग्रहण करने से पूर्व प्राधिकारी के समक्ष शपथ ग्रहण करनें का प्रवधान है।
शपथ - नगरपालिका कि प्रथम बैठक से 1 माह के भीतर शपथ लेना जरूरी है। यदि 1 माह के अन्दर शपथ नहीं ली जाऐगी तो पद रिक्त माना जाऐगा।
धारा 38 - त्यागपत्र
इसमें नगरपालिका सदस्य कार्यपालक मजिस्टेªट द्वारा नोटिस देकर त्यागपत्र दे सकते है। त्यागपत्र नोटिस देने कि तिथि से 15 दिन तक या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार करने पर जो भी पहले हो, माना जाऐगा।
धारा 39 - सदस्य को हटाया जाना
राज्य सरकार एक उच्च स्तरिय जाँच के बाद निम्नलिखित कारणों के आधार पर पद से हटा सकती है -
- नगरपालिका की लगातार तीन साधारण बैठकों में अनुपस्थित रहे।
- धारा 37 के प्रावधानों का पालन नहीं करे।
- धारा 14 व 24 में उल्लेखित कोई अयोग्यता ग्रहण कर ले।
- धारा 21 की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता हो।
- सदस्य के रूप में जान बूझकर कर्तव्यों की उपेक्षा करता हो।
- किसी निक्रिष्ट आचरण का दोषी है।
- सदस्य के रूप में आपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।
- अपने पद का दुरूपयोग किया हो।
जाँच किसी सेवा निवृत अधिकारी (जो राज्य स्तरिय सेवा से कम रेंक का ना हो) या अन्य प्राधिकारी से करवाऐगी, जिसमें संबंधित सदस्य को अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर मिलेगा। यदि जाँच सिद्ध हो जाने पर सदस्य को पद से हटाने का आदेश मिलेगा।
धारा 40 - पदावधि की समाप्ति के पश्चात कतिपय अभिकथनों की जाँच
नगरपालिका के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उनकें कार्यों, नीतियों व योजनाओं की जाँच हो सकती है।
धारा 41 - धारा 39 के अधीन हटाये गये सदस्यों की निर्योग्यता
यदि किसी नगरपालिका के सदस्य को धारा 39 व 40 में वर्णित प्रावधानों के आधार पर पद से हटाया गया है तो वह 6 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता है।
धारा 42 - किसी नगरपालिका के सदस्य का पद और संसद या राज्य विधानसभा या किसी पंचायतीराज संस्था की सदस्यता के साथ धारण करने पर निर्बन्धन
नगरपालिका का कोई सदस्य किन्हीं दो का सदस्य नहीं रह सकता है वह केवल किसी एक का ही सदस्य रह सकता है। संबंधित व्यक्ति को 14 दिनों के अन्दर अपने अन्य पदों से त्यागपत्र देना होगा।
धारा 43 - प्रत्येक नगरपालिका में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा
- प्रत्येक नगरपालिका में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा।
- प्रत्येक नगरपरिषद् में एक सभापति और एक उपसभापति होगा।
- प्रत्येक नगरनिगम में एक महापौर और एक उपमहापौर होगा।
यदि नगरपालिका का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बिना अनुमति के 1 माह तक अनुपस्थित रहते है तो वह अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं रहेगें। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का 6 माह से अधिक का आवकाश मंजूर नहीं होगा। अध्यक्ष न होने पर उपाध्यक्ष कार्य करेगा। उपाध्यक्ष अध्यक्ष को त्यागपत्र देगा किन्तु अध्यक्ष राज्य सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति को या प्राधिकारी को त्यागपत्र देगा। त्यागपत्र अधिकतर 30 दिन की समयावधि में प्रभावी मान लिया जाऐगा। यदि अध्यक्ष का पद खाली है तो आगामी 6 माह में पुनः चुनाव करवाया जाऐगा लेकिन राज्य सरकार विशेष परिस्थिति में इसकी अवधि 3 माह के लिए बढ़ा सकती है।
नगरपलिका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद तुरंत रिक्त हो जाऐ तो उसके विरूद्ध नगरपालिका द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है।
अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का कार्यकाल नगरपालिका के कार्यकाल के समान 5 वर्ष होगा।
नया निर्वाचित अध्यक्ष या उपाध्यक्ष शेष कार्यकाल के लिए होगा।
धारा 44 - अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के निर्वाचन की विधिमान्यता का अवधारण
अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के निर्वाचन को जिला न्यायाधीश के समक्ष निर्वाचन याचिका प्रस्तुत कर प्रश्नगत किया जा सकता है। जिला न्यायाधीश लिखित कारणों सहित अधीनस्त किसी अन्य न्यायालय को स्थानान्तरित कर सकता है।
उपधारा 2 - याचिका कौन प्रस्तुत करेगा - पराजित उम्मीदवार या फिर जिस उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो गया हो। याचिका की जमा राशि 1000 रूपये होगी।
धारा 45 - मुख्य नगरपालिका कृत्य
- लोक स्वास्थ्य व स्वस्था का ध्यान रखना।
- मल व जल निकासी की व्यवस्था करना।
- रोशनी की व्यवस्था करना।
- आग नियंत्रण का काम भी नगरपालिका करती है।
- खतरनाक व्यापार व व्यवसायों पर नियंत्रण करना।
- शहर में शौचालयों का निर्माण करवाना।
- जन्म व मृत्यु का पंजीकरण करना।
- मृत जानवरों के शव का निस्तारण करना।
- मार्गों का नामकरण व धरों का संख्याकरन करना।
- जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण और छोटे परिवार को बढ़ावा देना का काम भी नगरपालिका का है।
- आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए योजनाए तैयार करना।
- मानव बस्तियों के लिए योजनाएँ तैयार करना।
- बाग, बगीचा और झरना निर्माण आदि की व्यवस्था करना।
- मनोरंजन की व्यवस्था करना।
- जिला या क्षेत्रीय विकास योजनाओं के साथ नगरिय विकास योजनाओं को जोड़ना।
धारा 46 - अन्य नगरपालिका कृत्य
- पर्यावरण संरक्षण क्षेत्र में कार्य करना।
- लोक स्वास्थ्य व स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य करना।
- शिक्षा व संस्कृति के क्षेत्र में भी कार्य करना।
- लोक कल्याण के क्षेत्र में कार्य करना ।
- सामुदायिक क्षेत्र के कार्य करना।
धारा 47 - सरकार द्वारा समनुदेशित कृत्य
राज्य सरकार नगरपालिका को आवश्यकताओं और संसाधनों को ध्यान में रखकर अन्य काम सोप सकती हैं।
धारा 48 - अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के कृत्य
अध्यक्ष के कृत्य -
- बैठक आयोजन करवाना।
- बैठक की अध्यक्षता करना।
- वित्तिय व कार्यपालिका प्रशासन पर निगरानी रखना।
उपाध्यक्ष के कृत्य - अध्यक्ष के अनुपस्थित में अध्यक्ष के समस्त कार्य करना।
धारा 49 - मुख्य नगरपालिका अधिकारी की शक्तियाँ व कार्य
- नगरपालिका के सभी अभिलेखों की रक्षा व रख - रखाव करेगा।
- मुख्य नगरपालिका अधिकारी नगरपालिका की ऐसी समस्त शक्तियों का उपयोग करेगा जो राज्य सरकार उसे सौपेंगी।
- समस्त पत्राचार मुख्य नगरपालिका अधिकारी नाम से होते है।
- मुख्य नगरपालिका अधिकारी नगरपालिका की बैठकों में किसी भी विषय पर स्पष्टीकरण दे सकता है लेकिन मत देने का अधिकार नहीं है।
धारा 50 - कार्यभार सौपना
नगरपालिका के अध्यक्ष के न होने पर उपाध्यक्ष काम करेगा व उपाध्यक्ष के न होने पर राज्य सरकार द्वारा निर्देशित व्यक्ति अध्यक्ष का कार्य करेगा। वरियता उसी वर्ग व्यक्ति को दी जाऐगी जिस व्यक्ति का पूर्व में अध्यक्ष था।
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